भारतीय संविधान का विकास - Development of Indian Constitution

संविधान


संविधान शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द "कॉन्सटीट्यूरे" से हुई है, जिसका अर्थ व्यवस्था करना,प्रबंध करना, या आयोजन करना होता है।
स्वराज विधेयक का प्रारूप बाल गंगाधर तिलक द्वारा 1895 ई में प्रस्तुत किया गया।
भारतीय संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा के गठन की मांग महात्मा गांधी द्वारा 1922 ई में तथा 1934 ई में जवाहर लाल नेहरू द्वारा किया गया।
भारतीय संविधान का ऐतेहासिक काल 1600 ई से प्रारम्भ हुआ।
1600 ई में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई थी तथा इसकी शुरुआत चार्टर एक्ट द्वारा हुई थी।
कम्पनी के प्रबंधन की समस्त शक्ति गवर्नर तथा 24 सद्स्ययीय परिषद में निहित थी।

1726 का चार्टर एक्ट


कोलकाता , बम्बई और मद्रास प्रेसिडेंसीओ के राज्यपाल एवं उनकी परिषद को विधायी अधिकार प्रदान किया गया।
1726 तक यह शक्ति कंपनी के 'बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स' में निहित थी

पिट्स इंडिया एक्ट - 1784


पिट्स इंडिया एक्ट को एक्ट ऑफ सेटलमेंट के नाम से जाना जाता है।
द्वैध शासन की व्यवस्था का आरम्भ पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा किया गया।
रेग्युलेटिंग एक्ट की विसंगतियों , ब्रिटिश शासन का कम्पनी पर अपूर्ण नियंत्रण तथा भारत में कम्पनी के कुशासन तथा उसके कर्मचारियों द्वारा किये जा रहे अन्याय आदि को दुर् करने के लिए पिट्स इंडिया एक्ट को लागू किया गया।
कोर्ट ऑफ डायरेक्टर के पद व्यापारिक मामलो के लिए के लिए किया गया।
पिट्स इंडिया एक्ट की स्थापना/गठन राजनैतिक मामलो के नियंत्रण के लिए किया गया।

1773 का रेग्युलेटिंग एक्ट


1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के कारण दीवानी अनुदान के फलस्वरूप बंगाल,बिहार और ओडिशा प्रान्त कि वास्तविक शासक बन गयी।
1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को 'बंगाल का गवर्नर जनरल ' के नाम का पद दिया गया।
बंगाल,बिहार और ओडिशा के लिए विधि/नियम बनाने का अधिकार कलकत्ता के गवर्नर को 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत दिया गया।
1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के अंतर्गत कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी और कोर्ट को दीवानी, फौजदारी ,नौसेना तथा धार्मिक मामलों की सुनवाई एवं फैसले का अधिकार दिया गया।
कलकत्ता के सुप्रीम कोर्ट में एक न्यायधीश एवं तीन अपर न्यायधीश होते थे।
कलकत्ता के सुप्रीम कोर्ट के प्रथम मुख्य न्यायधीश सर एलिजाह इम्पे थे।
1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को ' कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स' के माध्यम से कम्पनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया।

1813 का चार्टर एक्ट


1813 के चार्टर एक्ट के द्वारा कम्पनी के भारतीय व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
किन्तु 1813 में ब्रिटिश कम्पनी को चीन के साथ व्यापार एवं पूर्वी देशो के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 वर्षो का एकाधिकार प्राप्त रहा।
1813 के चार्टर एक्ट के अंतर्गत कम्पनी के अधिकार-पत्र को 20 वर्ष के लिए बढा दिया गया।
1813 के चार्टर एक्ट से राजलेख द्वारा सबसे महत्वपूर्ण कार्य- कलकत्ता,बम्बई और मद्रास की सरकारों द्वारा बनाई गई विधियों का ब्रिटिश संसद द्वारा अनुमोदन अनिवार्य कर दिया गया।

1833 का चार्टर एक्ट


इसके द्वारा कम्पनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिया गया।
इस अधिनियम के द्वारा देश में एक केंद्रीय शासन प्रणाली की शुरुवात हुई।
बंगाल के गवर्नर जनरल को सम्पूर्ण भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
गवर्नर जनरल की परिषद में एक और सदस्य की नियुक्ति हुई जिसे विधि सदस्य कहा जाता था।
इस अधिनियम के परिणामस्वरूप प्रथम विधि आयोग की स्थापना हुई।
सर्वप्रथम मैकाले को विधि सदस्य के रूप में गवर्नर जनरल की परिषद में समिलित किया गया।
कम्पनी के चीन से व्यापार तथा चाय सम्बन्धी व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
इसके अंतर्गत पहले बनाये गए कानूनों को नियामक कानून कहा गया और नए कानून के अंतर्गत बने कानूनों को एक्ट या अधिनियम कहा गया।
चार्टर एक्ट 1833 ने सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास।

1853 का चार्टर एक्ट


इस एक्ट में सिविल सेवकों की भर्ती एवम चयन हेतु खुली प्रतियोगिता व्यवस्था का आरम्भ किया गया।
इसके लिए 1854 ई. में भारतीय सिविल सेवा के सम्बन्ध में मैकाले समिति की नियुक्ति की गयी।
पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद के विधावी एवम प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया।
इस अधिनियम के द्वारा भारत के लिए एक पृथक विधान परिषद की स्थापन की गयी तथा बंगाल के लिए एक नए लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति की गयी।

1858 का अधिनियम


इसके अंतर्गत भारत के शासन को कम्पनी के हाथों से सम्राट को हस्तांतरित कर दिया गया तथा भारत का शासन इंग्लैंड के सम्राट के नाम से किया जाने लगा।
इस अधिनियम में गवर्नर जनरल का पदनाम बदलकर "भारत का वायसराय" कर दिया गया।
इस अधिनियम में 1784 के पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा लागू द्वैध शासन प्रणाली समाप्त कर दी गई।
इस अधिनियम के नियंत्रण बोर्ड और निदेशक कोर्ट समाप्त कर दिया गया।
इसमें एक नए पद भारत के राज्य सचिव का सृजन किया गया।

1861 का भारत परिषद अधिनियम


केंद्रीय सरकार को सार्वजनिक ऋण,वित्त,मुद्रा,डाक एवम तार आदि के संबंध में प्रांतीय सरकार से अधिक अधिकार दिए गए।
भारत परिषद को विधायी संस्था बनाया गया तथा उसे भारतीय सन्दर्भ में कानून बनाने का अधिकार दिया गया।
इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई।




वायसराय को अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया।
मद्रास तथा बम्बई की सरकारों को भी व्यवस्थापिका सम्बन्धी अधिकार दिया गया।
इस अधिनीयम द्वारा प्रांतीय विधायिका का तथा देश के शासन के विकेंद्रीकरण का कार्य प्रारम्भ हुआ।
लार्ड कैनिंग के तीन भारतीयों -- बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और दिनकर रॉव को विधानपरिषद में मनोनित किया।

1865 का अधिनियम


इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर को विदेश में रहने वाले भारतीयों के सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार दिया गया।

1876 का शाही उपाधि अधिनियम


औपचारिक रूप से भारत सरकार का ब्रिटिश सरकार कको अंतरण मेनी किया गया।
28 अप्रैल, 1876 ई. को एक घोषणा द्वारा महारानी विक्टोरिया को भारत की साम्राज्ञी घोषित किया गया।

1892 का अधिनियम


इस अधिनियम के द्वारा सर्वप्रथम अप्रत्यक्ष रूप से केंद्रीय तथा प्रांतीय विधान परिषदों में निर्वाचन की व्यवस्था की गयी।
परिषद के भारतीय सदस्यों को वार्षिक बजट पर बहस करने और सरकार से प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।
केंद्रीय विधान परिषद में न्यून्तम 10 तथा अधिकतम सदस्य संख्या 16 निर्धारित की गयी।

1909 का मार्ले-मिण्टो सुधार अधिनियम


1909 ई में लार्ड मार्ले इंगलैंड में भारत के राज्य सचिव और लार्ड मिण्टो भारत वायसराय थे।
केंद्रीय विधानसभा में अतिरिक्त सदस्यों की संख्या 16 से बढ़ाकर 60 ककर कर दी गयी।
इसमें 32 गैरसरकारी सदस्यों में से 27 सदस्य निर्वाचित होते थे जिनमे 15 सदस्य मनोनीत होते थे।
साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान इस अधिनियम की प्रमुख विशेषता थी।
1909 में सुधार करने के कारण लार्ड मिण्टो को प्रतिनिधित्व का पिता कहा जाता है।
इस अधिनियम के अंतर्गत पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर को कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया।
1909 मार्ले मिण्टो सुधार अधिनियम द्वारा प्रेसीडेंसी कॉर्पोरेशन , चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स , विश्वविद्द्यालयो और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान क्या गया।

1919 का भारत सरकार अधिनियम


1919 भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत भारत में द्वैध शासन प्रणाली की स्थापना हुई।
केंद्र में द्विसदनात्मक विधायिका की व्यवस्था की गई।
इसके अंतर्गत प्रथम,राज्य परिषद तथा द्वितीय केंद्रीय विधानसभा स्थापित की गई।
राज्य परिषद कि सदस्यो की संख्या 60 तथा केंद्रीय विधानसभा के सदस्यों की सँख्या 145 थी।
जिसमे 104 निर्वाचित तथा 41 मनोनीत किये जाते थे।
सर्वप्रथम विधायिका के सदस्यों का प्रत्यक्ष रूप से चुनाव का प्रावधान किया गया, जोकि प्रांतीय विधान परिषदों के संदर्भ में था।
इसके अंतर्गत 8 प्रान्तों में विधान परिषदों का गठन किया गया।
बम्बई विधान परिषद में 111, मद्रास विधान परिषद में 127 , बंगाल विधान परिषद में 239, संयुक्त प्रान्त की विधान परिषद में 123 ,पंजाब की विधान परिषद में 93, बिहार एवं ओडिशा के विधान परिसधड में 103 , मध्यप्रान्त एवं बरार के विधान परिषद में 70 और असम के विधान परिषद में 53 सदस्य शामिल थे।
इस अधिनियम को मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहते है।
मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार द्वारा भारत में पहली बार महिलाओ को वोट देने का अधिकार मिला।
1919 भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत लोकसेवा आयोग का गठन किया गया।
1926 ई में सिविल सेवको की भर्ती के लिए केंद्रीय लोकसेवा आयोग का गठन किया गया।
1927 मैं साइमन आयोग का आगमन हुआ।
आरक्षित विषयो का प्रशासन गवर्नर और उसकी कार्यकारी परिषद के माध्यम से किया जाना था , जबकी हस्तांतरित विषयो का प्रशासन गवर्नर द्वारा विधान परिषद के उत्तरदायी मंत्रियों की सहायता से किया जाना था।

1935 का भारत सरकार नियम


भारत में एक फेडरल (संघीय)न्यायलय की स्थापना की गई जो दिल्ली में स्तिथ था।
अधिनियम में 321 अनुच्छेद तथा 10 अनुसूचियां थी।
इस अधिनियम द्वारा भारत में संघात्मक सरकार की स्थापना की गई।
केंद्र और प्रान्तों में शक्तियों का विभाजन किया गया।
इस अधिनियम को भारत के 'मिनी संविधान ' का संदर्भ दिया गया।
इस अधिनियम के द्वारा प्रान्तों में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर दिया गया।
इन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया।



इस अधिनियम ने द्वैध शासन प्रणाली का शुभारम्भ किया।
इस अधिनियम में न केवल संघीय लोक सेवा आयोग की स्थापना बल्कि प्रांतीय सेवा आयोग और दो या अधिक राज्यो के लिए संयुक्त सेवा आयोग की स्थापना की।
इसने 11 राज्यो में से 6 राज्यो में द्विसदनीय व्यवस्था प्राम्भ की।
अधिनियम ने केंद्र और इकाइयों के बीच तीन सुचियाँ--{1} ससंघीय सूची (59 विषय) {2} राज्य सूची (54 विषय) {3} समवर्ती सूची {36 विषय} के आधार पर शक्तियों का बँटवारा।
दलित जातियों, महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था की।
इसके अंतर्गत देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की।
1935 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा स्थापित संघ में अवशिष्ट शक्तियाँ गवर्नर जनरल को प्रदान की गयी थी।
भारत सरकार अधिनियम 1935 के प्रावधानों के अनुरूप 1937 में वर्मा को भारत से अलग कर दिया।
भारतीय संविधान में राष्ट्रपति की अध्यादेश निर्गत करने वाली शक्ति (अनु. 123) भारत सरकार अधिनियम 1935 में धारा 42 से प्रेरित है।

1947 का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम


ब्रिटिश संसद में 04 जुलाई, 1947 ई. को भारतीय स्वतन्त्रता अधिनीयं प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई 1947 ई. को स्वीकृत हुआ।
15 अगस्त,1947 ई. को भारत एवम पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए गए।
इस अधिनियम के अधीन भारत डोमीनियन को सिंध, ब्लूचिस्तान, पश्चिम पंजाब, पूर्वी बंगाल, पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त और असम के सिलहट जिले को छोड़कर भारत का शेष राज्य क्षेत्र मिल गया।



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