पंचायती राज व्यवस्था: ऐतिहासिक विकास
भारत मेँ स्थानीय स्वशासन की अवधारणा प्राचीन काल से ही मौजूद है। आधुनिक भारत मेँ स्वाधीनता से पूर्व ही ब्रिटिश शासन के समय मेँ ही पंचायततें स्थानीय स्वशासन की इकाई के रुप आई थीं परन्तु उन्हें उस समय सरकार के नियंत्रण मेँ कार्य करना पडता था।
- 2 अक्तूबर, 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा 2 अक्तूबर 1953 को राष्ट्रीय प्रसार सेवा कार्यक्रम प्रारंभ किए गए, परन्तु दोनो ही कार्यक्रमों अपेक्षित सफलता नहीँ मिली।
- सामुदायिक विकास कार्यक्रम की जांच के लिए केंद्र सरकार ने 1957 मेँ बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता मेँ एक अध्ययन दल का गठन किया। इस दल ने 1957 के अंत मेँ अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की, कि लोकतांत्रिक विकेंद्रीयकरण और सामुदायिक कार्यक्रम को सफल बनाने हैतु पंचायत राज्य संस्थाओं की अविलम्ब शुरुआत की जानी चाहिए। अध्ययन दल ने इसे लोकतांत्रिक विकेंद्रीयकरण का नाम दिया।
- प्रारंभ मेँ पंचायती राज संस्थाओं की संरचना भिन्न-भिन्न राज्योँ मेँ अलग अलग रही। देश के 14 राज्यों संघ शासित प्रदेशों में द्विस्तरीय प्रणाली और 9 राज्यों / संघ शासित प्रदेशों में एक स्तरीय प्रणाली विद्यमान थी।
- पंचायती राज संस्थाएं ठीक तरह से कार्य नहीँ कर रही थी, अतः केंद्र सरकार ने 13 सदस्यीय अशोक मेहता समिति का गठन किया। इस समिति ने सिफारिश की कि विकेंद्रीकरण का प्रथम स्तर जिला हो, उसके नीचे मंडल पंचायत का गठन किया जाए जिसमेँ लगभग 10-15 गांव शामिल हों। ग्राम पंचायत या पंचायत समिति की जरुरत नहीँ है, पंचायतो का कार्यकाल केवल 4 साल का हो और विकास कार्यक्रम जिला परिषद द्वारा तैयार किया जाए तथा उनका क्रियान्वयन मंडल पंचायत द्वारा हो। इस सिफारिशों को क्रियान्वित नहीं किया जा सका।