|
फाइल फोटो |
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में संविधान पीठ आज मंगलवार से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए दायर की गई पर सुनवाई करना शुरू कर रही है।
इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश दीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कोल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली कोहली कोहली शामिल हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के संविधान के शिक्षकों ने ही वर्ष 2018 में समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाला ऐतिहासिक फ़ैसला दिया था।
इसके बाद से भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी आधार देने की मांग करने के तरीके से उठाया जा रहा है।
इस दिशा में सर्वोच्च न्यायालय ने देश की सभी अदालतों में याचिका दायर की हैं।
साल 2018 का ऐतिहासिक फ़ैसला
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में नवतेज सिंह जौहर मामले में समलैंगिक जोड़ों के संबंध से संबंधित आपराधिक मामलों की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
इससे पहले समलैंगिक लोगों के बीच संबंध को अपराध की श्रेणी में रखा जाता था, जिनके खिलाफ सामाजिक और कानूनी स्तर पर कार्रवाई की जा सकती थी।
इस वजह से समलैंगिक जोड़ों को अलग-अलग स्तरों पर प्रताड़ना और यौन शोषण जैसे कटु जोड़ों का सामना करना पड़ा।
इस मामले में दायर सभी याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सभी चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अध्यक्षता वाले संविधान ने ऐसे संबंधों को अप्राकृतिक धारा 377 को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फ़ैसले के साथ ही समलैंगिक पुनर्वास की दुनिया में एक नया अध्याय शुरू हुआ।
समलैंगिक अधिकारों ने अदालत में अपने संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर निकालने में सफ़लता हासिल करने के बाद उन्हें मान्यता की दिशा में प्रयास करना शुरू किया।
समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता
इसके बाद ही समलैंगिक विवाह की मान्यता के लिए अलग-अलग अदालतों में याचिका दायर की गई।
इन याचिकाओं में दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई याचिका सबसे प्रमुख है, जिसकी सुनवाई चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस सिंबल जालान ने की थी।
शिकायत आरोप ने इस मामले में हिंदू विवाह कानून के खंड में पांच का उल्लेख किया था। ये कानून कहता है कि दो हिंदुओं के बीच शादी होनी चाहिए।
इसी कानून का खंड - 5 समलैंगिक और विपरीत लिंगी जोड़ों के बीच भेदभाव नहीं करता है।
ऐसी सभी याचिकाओं में हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विशेष विवाह अधिनियम 1954 और विदेशी विवाह अधिनियम 1969 के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की गई थी।
समलैंगिक विवाह पर सरकार का पक्ष
सेंटर सरकार ने अब तक समलैंगिक विवाह मान्यता देने पर विचार करने की याचिकाओं का विरोध किया है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता हाल में सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ ही डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले बेंच के अलग-अलग रूप थे।
केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा है कि समलैंगिक मान्यता मान्यता 'कानून की एक पूरी शाखा का विज़ुअलाइज़ेशन नियंत्रण' होगा।
केंद्र सरकार ने तर्क दिया है, ''समलैंगिक प्राधिकरण को मान्यता देने के फ़ैसले का मतलब क़ानून की एक पूरी शाखा का दृश्य अधिकार हस्ताक्षर करना होगा। अदालत को इस तरह से देने से बचना चाहिए।'' यह मौजूदा स्थिति के अनुरूप नहीं होगा।
सरकार केंद्र ने कहा है कि याचिका जो शहरी दृष्टिकोण के मत को उल्लेखों हो उनकी तुलना उपयुक्त विधान से नहीं की जा सकती है क्योंकि इसमें इस विषय पर पूरे देश के विचार शामिल हैं।
सेंटर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का एक एप्लीकेशन है जिसे बीबीसी ने भी देखा है।
इसमें केंद्र सरकार ने पूछा है कि किस संवैधानिक व्यवस्था को मौजूदा कानून की व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए कि मौजूदा कानून का आधार ही बर्बाद हो जाए, जिसमें जैजिक पुरुष और जैविक महिला की शादी की बात कही गई है।
धार्मिक संगठन क्या कहते हैं?
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में अधिकतर धार्मिक संगठन एक सुर में दिखा रहे हैं।
समलैंगिक विवाह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के पैर अर्जी में जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि शादी का सिद्धांत ढाँचा ही एक महिला और एक पुरुष पर आधारित है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद समेत तमाम अन्य धार्मिक संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं।
इन कपड़ों का मानना है कि समलैंगिक विवाह अप्राकृतिक हैं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के सचिव नियाज़ अहमद फ़ारूक़ी ने बीबीसी से कहा है, ''शादी का मकसद एक परिवार का ढांचा तैयार करता है. अगर इसमें दो विपरीत लिंग की अवधारणा उत्पन्न हो जाती है, तो शादी का संकल्प ही पूरा हो जाएगा।''
केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल के पुजारी फादर जैकब पलाकपिली कोच्ची का भी रूख कुछ ऐसा ही है।
उन्होंने कहा, "पारंपरिक रूप से समझा जा सकता है तो शादी में दो वयस्क महिलाएं और पुरुष एक साथ रहने की सहमति देते हैं। दो महिलाओं या दो पुरुषों के बीच शादी को नहीं माना जा सकता है क्योंकि प्रकृति स्वीकृति स्वीकृति नहीं है।"
वे कहते हैं, ''प्रकृति को देखिए पक्षी, जानवर या मछली के बीच भी विपरीत लिंग के साथ संबंध बनते हैं वैसे ही महिला और पुरुष मिलते हैं ताकि जन्म हो सके, पीढ़ियां आगे बढ़ सकें। लेकिन अगर समलैंगिक विवाह करते हैं तो यह कैसे संभव होगा? इसलिए इसे वैध जीवन के प्रकार के तौर पर कैसे स्वीकार किया जा सकता है।''
उनके अनुसार, ''बाइबल का कहना है कि ईश्वर ने महिला और पुरुषों को बनाया और वे शादी के बंधन में बंध गए।''
वहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था कि संघ केंद्र सरकार की सहमति से सहमति है।
उन्होंने हरियाणा में तीन दिन के सभी भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के आखिरी दिन कहा है, 'मैंने इससे पहले भी रिकॉर्ड पर कहा है कि आप किसी के साथ भी रह सकते हैं लेकिन हिंदू जीवन शास्त्र में विवाह एक संस्कार है। ये केवल आनंद का यंत्र नहीं है, न ही ये कॉन्ट्रेक्ट है। शादी के संस्कार का मतलब दो लोग एक दूसरे से शादी करते हैं और साथ रहते हैं, लेकिन केवल अपने लिए नहीं। वो एक परिवार की भी शुरुआत करते हैं।"